नरवाई पर आग लगाने वाले पर होगी कानूनी कार्यवाही अपनी फसल भूमि और पर्यावरण की रक्षा करे : जहरीले रसायनो का विवेकपूर्ण प्रयोग करे

नर्मदापुरम। जिला प्रशासन द्वारा नरवाई में आग लगने की घटनाओं को नियंत्रित करने, नरवाई में आग लगने के दुष्परिणामों एवं ग्रीष्मकालीन मूंग फसल में अत्याधिक मात्रा में गैर अनुशंसित कीटनाशको के प्रयोग से होने वाले दुष्परिणामों के प्रति किसानों को जागरूक करने के लिए 20.03.2025 से गांव-गांव में किसान खेत पाठशालाओं का आयोजन किया जा रहा है।
विगत वर्षों में देखने में आया है कि कुछ किसान गेंहूँ की कटाई हार्वेस्टर से कराने के बाद खेतों में नरवाई खत्म करने के लिए आग लगा देते है, जिससे मिट्टी और पर्यावरण तो प्रदूषित होता ही है, साथ ही गर्मी के मौसम में आग की चिंगारी दूसरे किसानो के खेतो में पहुंचने से पड़ोसी किसानों के खेतों में खड़ी फसल जलकर राख हो जाती है. जिससे किसानों को लाखो रूपये का नुकसान का सामना करना पड़ता है। खेत खलियान से होते हुए आग की लपटे लोगो के घरो तक भी पहुंच जाती है, जो कि बड़े हादसों का सबब बन जाती है। यह आग बड़ी तेजी से फैलती है और किसान असहायता अपने उठाये हुए कदम पर पश्चात करता रह जाता है।
उप संचालक कृषि जे. आर. हेड़ाऊ ने बताया है कि नरवाई में आग लगाने से मिटटी में उपस्थित लाभप्रद सूक्ष्म जीवाणू, केंचूए व अन्य लाभकारी जीव नष्ट हो जाते है, जैव विविधता समाप्त हो जाती है। नरवाई के साथ कार्बनिक पदार्थ जल जाने के कारण मिट्टी की उपजाऊ शक्ति नष्ट हो रही है। जैविक खाद का निर्माण रूक जाता है। इस कारण से प्रमाण उपज प्राप्त करने के लिए किसान भाइयों द्वारा वर्ष दर वर्ष और अधिक मात्रा में रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग किया जा रहा है। खेत में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा कम होने से मृदा कठोर हो रही है और भूमि की जलधारण क्षमता कम हो रही है। किसान भाईयो को सलाह दी जाती है कि कंबाईन हार्वेस्टर के साथ स्ट्रा मैनेजमेंट सिस्टम अपनाये, गेंहूँ फसल की कटाई के बाद खेत में बचे हुए फसल अवशेषो को जलाने के बजाय नरवाई का उचित प्रबंधन करे, आधुनिक तकनीक से निर्मित सुपर सीडर यंत्र एवं पूसा डी-कंपोजर के प्रयोग से सकारात्मक व सफल परिणाम प्राप्त हो रहे है।
नर्मदापुरम जिले में एक और परेशान करने वाली प्रवृत्ति सामने आई है, जहां किसान गर्मियों की मूंग फसल को कटाई के पूर्व सुखाने के लिए ग्लाईफोसेट और पैराक्वाट सहित गैर अनुशंसित शाकनाशी रासायनो को बड़े पैमाने पर उपयोग कर रहे है, इन शाकनाशी के अंधाधुंध प्रयोग को मूंग के दानों में विषाक्त अवशेषों के संचय से जोड़ा गया है, जिससे कैंसर, गुर्दे की क्षति और यकृत की शिथिलता सहित कहीं स्वास्थ्य समस्या हो सकती है, इसके अलावा इन जहरीले रसायनों के अवशेष मिट्टी में कई सालों तक बने रह सकते है, जो भू-जल और सतही जल को दूषित कर रहे है और गैर-लक्षित जीवों को प्रभावित कर रहे है। मानव स्वास्थ्य और पर्यावरणीय स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण जोखिम पैदा हो रहा है। जैसे-जैसे स्थिति सामने आ रही है, प्रशासन गैर-अनुशंसित शाकनाशियों के उपयोग से जुड़े जोखिमों के बारे में जागरूकता बढ़ाने और टिकाऊ पद्धति को बढ़ावा देने के लिए काम कर रहा है।
इन व्यावहारिक समस्याओं के प्रति किसानों को जागरूक करने के लिए गांव-गांव में किसान खेत पाठशाला “प्रशिक्षण सह जागरूकता कार्यक्रम” आयोजित किया जा रहा है। कार्यक्रम के नोडल संबंधित क्षेत्र के अनुविभागीय अधिकारी राजस्व है तथा वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी, कृषि विस्तार अधिकारी, पटवारी, ग्रामीण उद्यान विस्तार अधिकारी, सहायक पशु चिकित्सा क्षेत्राधिकारी, सहकारिता निरीक्षक, संबंधित ग्राम पंचायत सचिव, संबंधित ग्राम पंचायत के रोजगार सहायक आवश्यक रूप से समय पर उपस्थित रहते हुए कार्यक्रम को आयोजित करना सुनिश्चित करेंगे तथा नरवाई प्रबंधन, नरवाई में आग लगने के दुष्परिणाम एवं पर्यावरण को होने वाली क्षति से कृषकों को जागरूक कराने साथ ही ग्रीष्मकालीन मूंग फसल के उत्पादन में एकीकृत नाशी जीव प्रबंधन तकनीक अपनाने, मूंग की फसल की परिपक्वता के दौरान शाकनाशी का उपयोग न करने, नवीन टिकाऊ कृषि पद्धति पर बहुमूल्य जानकारी, शासन द्वारा चलाई जा रही किसान हितेषी योजनाओं की जानकारी दी जा रही है। सभी किसान बंधुओ से अनुरोध है कि पर्यावरण अनुकूल टिकाऊ कृषि पद्धतियों में कांति लाकर, खेत की शुद्ध आय में बढ़ोत्तरी करने, किसानो को सशक्त बनाने, पर्यावरण को सुरक्षित करने एवं मानव समाज के लिए उज्जवल भविष्य सुनिश्चित करने में सहयोग प्रदान करे।